अब नहीं चाहिए बहारे चमन
अब नहीं चाहिए बहारे चमन
ख़ुद हमने बीन लिए खवारे चमन
रौंद कर नन्हीं कलियाँ डालियों पर
किस इंतज़ार में हैं कुँवारे चमन
जितने भी बागवा आए वो लुटेरे निकले
आए फिर से कोई सँवारे चमन
वो एक दीवार उठा कर बोले
वो तुम्हारे हैं ये हमारे चमन
पाँव रखना भी हो रहा दुशवार
आओ मिल कर हमी बुहारें चमन
आँधियाँ बागवाँ से हार गयीं
कह गयीं अब यही उजाड़े चमन
अब तो सावन भी कम बरसते हैं
जी रहे ओस के सहारे चमन
हरेक आहट पे सरसराता है
अब भी हर पल तुम्हें पुकारे चमन
हो के मायूस ज़मीन वालों से
आसमाँ की तरफ़ निहारे चमन
कंचन