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20 Sep 2017 · 1 min read

अब नफ़रत की धुंध छँटने लगी। जिन्दगी तुझमें फिर सिमटने लगी।।

अब नफ़रत की धुंध छँटने लगी।
जिन्दगी तुझमें फिर सिमटने लगी।।

चूड़ियों की अजीब ख्वाईश है।
शाम होते ही ये खनकने लगी।।

आ भी जाओ न ख्वाब में मेरे।
हिज्र सी रात मुझको डसने लगी।।

ईश्क में अश्क़ क्यूँ मेरे छलके।
सोचकर और मैं सिसकने लगी।।

कोई रोके न अब कदम मेरा।
हद से ज़्यादा मैं अब बहकने लगी।।

है ख़ुदा भी नाराज़ सा मुझसे।
उससे ज़्यादा मैं नाम रटने लगी।।

ये जो नफ़रत है जान ले लेगी।
आ गले मौत अब लिपटने लगी।।

ये जो “वासिफ” है बेवफ़ा ही है।
बावफ़ा ख़ुद ही इसपे हँसने लगी।।

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