अब तो सूर्योदय है।
ये बूंद गिर रहे हैं
घट से धर की ओर
नीर ही है या अश्रुपूर्ण
है ये किस मिलन को
ये अपनत्व रिश्ता कैसा!
परिणय बंधन तो नहीं
जन्म-जन्मांतर का संगम
ये क्यों विकलता है ?
तड़ित की हुँकार गर्जन को
मानो महोच्चार गूंज उठी
शंखनाद तो नहीं, तो फिर
किसका यह आगाज़।
तरणि छूप-छूप निकले कहाँ
मानो नवविवाहित कन्या
ससुराल की ओर…
लगता दोनों है अश्रुपरिपूर्ण
चक्षु / घट !
श्यामवरण से श्वेतधरण
निर्मल, अमन ये पड़ी हरकण
अतृप्त भुवन तृप्त को
त्राहिमाम-त्राहिमाम तो नहीं।
आ ये वसंत नव कली राग
की ओर…..
सृजन को सृजित तत्व में
लाली प्रस्फुटन क्षितिज में
खड़िया या केसर तत्व
मडूक देती शृंगार किसे
अब तो सूर्योदय है।
वरुण सिंह गौतम