“अब तो यहाँ चारों ओर फ़कत पथराव दिखता हैं “
“अब तो यहाँ चारों ओर फ़कत पथराव दिखता हैं ”
अब तो चारों ओर बस बिखराव दिखता हैं।
फ़कत अपनों का अपनों से टकराव दिखता हैं।
मरहम नज़र नहीं आता किसी भी हाथों में
फ़कत सबके दिलों में घाव ही घाव दिखता हैं।
मुक्कमल नहीं हैं यहाँ बुनियाद किसी रिश्ते की
अब तो यहाँ सबका स्वार्थी सा स्वभाव दिखता हैं।
कोई भी यहाँ शांतचित्त नजर नहीं आता अब
सबकी मूछों पर बस चढ़ा ताव दिखता हैं।
कभी कोई कैसा होता हैं तो कभी कोई कैसा
सबका बदला बदला सा हाव भाव दिखता हैं।
कैसे कहें यहाँ कौन अपना हैं कौन पराया
सबके जेहन में फ़कत अलगाव दिखता हैं।
बेवजह साथ नहीं देता किसी का कोई यहाँ
अब तो बस यहाँ मतलबी लगाव दिखता हैं।
कौन रूकता हैं लम्बे वक्त तक किसी बारात में
अब तो बस यहाँ क्षणिक सा ठहराव दिखता हैं।
कहतें थे परिस्थितियाँ बदल जायेगी हमारे आने से
यहाँ तो फ़कत जुबानी बदलाव दिखता हैं।
सोचा था अमनोचैन होगा इनके आने से राम
अब तो यहाँ चारों ओर फ़कत पथराव दिखता हैं।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “