अब तो मिलने में भी गले – एक डर सा लगता है
अब तो मिलने में भी गले – एक डर सा लगता है
बड़ा ही मुश्किल है-
अपना सच अपने से ही छुपा पाना
तुम्हारा मन कुछ और है कहता
जुबां छुपाती कुछ और है
कहाँ तुम प्रेम की बातें करते हो
वहाँ दिल में छुपा कुछ और है
अब तो मिलने में भी गले –
एक डर सा लगता है
तुम्हें शायद इल्म नहीं होगा
पीठ पर मेरे –
पहले ही हज़ारों घाव
हैं अपनों के
जब तुम हाथ बढ़ाते हो
छुपा खंजर भी साथ होता है
तुम्हारा मन कुछ और है कहता
जुबां छुपाती कुछ और है