अब तो निश्चित है धन वर्षा, चौपाई छंद – – – रघु आर्यन
दिखते शंकर संगम तीरे ।
बन ठन घूमे फेरी फेरे ॥
उमड़ घुमड़ के आगे पीछे ।
बाल कन्हैया कुर्ता खीचें ॥
भाग भाग के दौड़ लगाये ।
हनूमान हैं गदा उठाये ॥
कांधे सुन्दर धनु हैं धारे ।
पकड़ पैर अब राम तुम्हारे ॥
बीच सड़क पर काली दिखतीं ।
हाथ जोड़ मैं बस कर विनती ।।
जैसे अब तो आगे बढ़ता ।
मइ्या सीता खड़ी हैं रस्ता ॥
भागे भागे नजर चुराये ।
मां लक्ष्मी से हम टकराये ।।
मां से मिल मन ही मन हर्षा ।
अब तो निश्चित है धन वर्षा ॥