अब तो जाग उठो इंसान
अब तो जाग उठो इंसान
क्यों बन बैठे हो शैतान
कहाँ फुर हुई इंसानियत
तुम में घर है हैवानियत
तुम्हारे अंदर हैं छिपे चोर
मोह,लोभ,क्रोथ,चितचोर
विकारों से तुम हो ग्रस्त
विचारों में तुम हो परस्त
मर्यादा को तुम गए भूल
कहाँ गए जीवन असूल
स्वार्थ वशीभूत हो स्वार्थी
गुम हो गई सोच निस्वार्थी
तुम तो चले थे पर सुमार्ग
क्यों भटक रहे हो कुमार्ग
तुम तो हो मनु के वंशज
जिस दिशा में रहे हो जा
बिगड़े दशा, सीधा हो जा
बड़ों का नहीं रहा सम्मान
करते हो तुम घोर अपमान
मनुजा से ही तुम जन्मे हो
उसी मनुजा को लोचते हो
सोचते तुम कुछ ओर हो
करते हट के कुछ ओर हो
किस छोर पर चले थे तुम
किस छोर पर अटके तुम
सीमाओं को रहे तुम लांघ
शिथिल हुई है जीवन जांघ
कब तक तुम पथ भटकोगे
कब तुम कहीं पर अटकोगे
मत देखो महलों के सपनें
ये सपनें कब होते हैं अपने
जब कभी टूटते हैं ये सपने
बहुत टीस देते हैं टूटे सपने
हकीकत में ही जीना सीख
मत मांगों कहीं से प्रेमभीख
कुछ नहीँ बिगड़ा आ जाओ
जीना सीखो और सीखाओ
बीती बातों को भूल जाओ
जीने की नव राहें बनाओ
सम्मान करो और करवाओ
प्रेम वात म़े घुलमिल जाओ
हैवानियत को जाओ भूल
इंसानियत को करो कबूल
सुखविंद्र सिंह मनसीरत