अब तो जनता ही देगी उन्हें गालियाँ।
गज़ल
काफ़िया- आँ
रदीफ- गैर रदीफ/गैर मुरद्दफ़
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212……212……212…….212
अब तो जनता ही देगी उन्हें गालियाँ।
जो बजाती थी उनके लिए तालियाँ।1
मुफलिसों को हटाकर हटी मुफलिसी,2
मुफलिसों की हटा दी गईं झुग्गियां।
फिर चुनावों की चर्चा शुरू हो गई,
फिर से शतरंज की बिछ गई गोटियांं।3
भेड़िया कोई बैठा न हो राह में,
अब तो सहमी सी लगती हमें बेटियां।4
कोई भी हिंदू मुस्लिम है लड़ता नहीं,
धर्म के नाम पर सेंकते रोटियां।5
देश औ आम जनता की किसको पड़ी,
ऐश करते वो उनकी कई पीढ़ियाँ।6
इस चकल्लस से मुझको बचा ऐ खुदा,
मै हूँ प्रेमी लिखा प्रेम की पातियां।7
……..✍️ प्रेमी