अब तो आजा …
अब तो आजा…
बसंती हिय अनुराग में
पीरी प्रीत मधु माघ में
ढूँढे तुझे व्याकुल नयन
अब तो आजा फाग में
चुन ताना मारे कोयरिया
प्रमत्त करे बौरी मंजरियाँ
सरसों भी हंस करे ठिठोरी
अब तो आजा साँवरिया
गुन गुन लेता प्राण अलि
छेड़े मुझे कचनार कली
मलय बयार चुभती हज़ार
अब तो आजा बहार चली
पीत चुनरिया मुझसे रूसी
धूप सुनहरी डसे सांप सी
टेसू ने उर आग लगाई
अब तो आजा दरस प्यासी
बिरह में सूखा अंग अंग
चैन लुट गया निशा संग
भाए न अँगड़ाता यौवन
अब तो आजा होऊँ मलंग
झर झर झरते नीर अनंत
बिरहन के दुःख का न अंत
गमन किया किस देस प्रीतम
अब तो आजा बीता बसंत
रेखांकन।रेखा