अब तुम आती भी हो तो बताती नही
अब तुम आती भी हो तो बताती नही
एहसास अपने आने का कराती नही
हवा के झरोख़ों सी आती हो
चुपके से छूकर जाती नही
फ़लक से दोस्ती कर ली है शायद
ज़मी पर तुम नज़र अब आती नही
ईद का चाँद बन बैठे हो अब
हिजाब से बाहर अब आती नही
किस्से अभी बाकी थे वफ़ा के
बेवफ़ाई हमें करनी आती नही
पर कुतर दिए सपनों के उन्होंने
हक़ीकत भी रास अब आती नही
आफ़ताब की नूर से कैसी दोस्ती
दोस्ती उन्हें अब रास आती नही
खोये रहते है उनके ख्यालों में
ख़्वाबों में अब वो आते नही
भूपेंद्र रावत
19।08।2017