अब जी हुजूरी हम करते नहीं
अब जी हुजूरी हम करते नहीं।
कोई मजबूरी अब हमारी नहीं।।
चाहे कोई माने गुरुर यह हमारा।
कमजोरी कोई अब हमारी नहीं।।
अब जी हुजूरी हम ———————-।।
आये नहीं वो तब हमसे मिलने।
स्वागत उनका था जब इस दर पे।।
बेताब है अब वो मिलने को हमसे।
ख्वाहिश मगर अब हमारी नहीं।।
अब जी हुजूरी हम ———————-।।
गर्दिश के दिन थे जब कल हमारे।
मना कर दिया हमको देने को पनाह।।
करते हैं तारीफ अब वो हमारी।
रौनक कम अब जो हमारी नहीं।
अब जी हुजूरी हम ———————-।।
उन्होंने लिया बहुत मजा कल हमारा।
उड़ाया मजाक बहुत हमारी गरीबी का।।
बताते हैं हमको, अब वो अपना।
मोहब्बत उनसे हम हमारी नहीं।।
अब जी हुजूरी हम ———————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)