अब चुप रहतेहै
लापरवाही करते रहने में ही भलाई है
परवाह करते हैं तो कुछ लोग ग़लत समझ लेते हैं
हम मानवता का छाता ओढ़ कर चलते हैं
कुछ लोग अपने मन से ही कहानी गढ़ लेते हैं।
रूह का नाता आज कल कहां समझते हैं
जिंदगी की किताब मेंयूंही इश्क का पन्ना जोड़ देते हैं
कांधे पर जिम्मेदारी का थैला जो अभी लटके रहते हैं
निभाऊं पूर्ण रूप से निभाऊ मै तन मन से लगे रहते हैं
मिलजुल कर रहना हमारा आंतरिक स्वभाव है
बातों से हमारी कभी ठेस किसी को भी नहीं पहुंचे
सुन कर भी हम अब चुप्पी साध कर रह लेते हैं।
सच में सहन ना होगी अब अनर्गल बातें सारी
बिखरे जाएंगे या बिफर जाएंगे कह देते हैं।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान