अब क्या खोना
गहरे सागर की गहराई का।
वह निर्जन सूना सा कोना।
मेरे सपनों का निश्चल होकर।
उस छोटे से कोने में सोना ।
कायरता ही तो कहलायेंगी।
कर्तव्य विमुख हो कर रोना।।
जब जागो तभी सवेरा है ।
ये तो मैं पढ़ता आया था ।
क्या आवश्यक है यह भी ।
प्रातः हित सूरज का होना ।
कुछ सीखा था कुछ पाया था।
चलते-चलते इस जीवन में।
हमें सताये कुछ खोने का डर।
खोया है सब अब क्या है खोना।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम