अब क्या करें
शाम भी है बेअसर अब क्या करें
रात भी अपने डगर अब क्या करें
ज़िंदगी जिसकी दिवानी हो चली
मिल न पाई वो नज़र अब क्या करें
आँखों से उनकी नशा जो कर लिया
मयकशी भी बेअसर अब क्या करें
ज़ाम ये खाली पड़े कुछ कह रहे
दर्द था भारी मगर अब क्या करें
याद में इतना अगर हम खो गए
जागते होगी सहर अब क्या करें