अब कोई दिल को भायेगा कहाँ….
अब कोई दिल को भायेगा कहाँ
समंदर बहकर जायेगा कहाँ
तेज़ रफ़्तारी देखी तो लगा
आज ये बादल छायेगा कहाँ
पर हवाओं के ए दिल क़तर तो दूं
मगर बतला तू ठहरायेगा कहाँ
हर तरफ फैला है गुबार-ए-दिल
खो दिया जो कुछ पायेगा कहाँ
आग की लपटें उठती हर जगह
गीत उल्फ़त के गायेगा कहाँ
ख्वाहिशों ने भर डाला दिल मिरा
या खुदा अब तू आयेगा कहाँ
यार अब करले हिसाब तू यहीं
दिल मिरा धक्के खायेगा कहाँ
—सुरेश सांगवान’सरु’