अब कोई कुरबत नहीं
अब किसी को किसी की जरूरत नहीं
इसलिए अब दिलों मेंं मुहब्बत नहीं
प्यार ईमान की जिसमें हर ईंट हो
बनती अब ऐसी कोई इमारत नहीं
बाप-बेटे खिंचें एक दूजे से हैं
क्योंकि रिश्तों में उनके वो शिद्दत नहीं
रात भर करवटे वे बदलते रहे
पति-पत्नी में अब कोई कुरबत नहीं
बेवफाई बढ़ी इस क़दर है कि अब
तो वफ़ा की किसी को जरूरत नहीं
अब कोई भी किसी का भला क्यों करे
दिखती ऐसी किसी की तबीयत नहीं
आदमीयत का हर दिन गला घुट रहा
यूँ जनाजे में लोगों की शिरकत नहीं
रस्म पुरखों की हमने (शोहरत)ख़ुद तोड़ दी
चार कंधों पे जाती है मय्यत नहीं
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
वाराणसी
स्वरचित
15/5/2022