“अब कुछ पल ठहर के चलते हैं”
बहुत देर हुई चलते चलते,
अब कुछ पल ठहर के चलते हैं।
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भूलकर भी तेरी गली से ना गुजरे हम।
इसलिए अक्सर राहे बदल के चलते हैं।
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तू सोचता है हम में समझ नहीं।
काश जानते कि हम नासमझ बन के चलते हैं।
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लोग समझते हैं में शराबी हूं।
हम तो अक्सर खाली पैमाना लिए बहक के चलते हैं।
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दीदार ना हो जाएं तुम्हारा इन गलियों में।
इसलिए अपनी नज़रें झुका के चलते हैं।
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बहुत देर हुई चलते चलते,
अब कुछ पल ठहर के चलते हैं।