अब की बार दीवाली में
अब की बार आई दीवाली में
तुम मिट्टी के दिये जला जाना
विदेशी वस्तु का तज कर के
तुम देसी वस्तुएं अपना जाना
जो सोते फुटपाथ पटरियों पर
तनिक ध्यान आकृष्ट कर जाना
वृद्ध अनाथ हैं आश्रमों में
तनिक दीपशिखा जला जाना
जो सहारे बिन बेसहारा हैं
बेसहारों का सहारा बन जाना
जो तमस में नित जीते हैं
तुम ज्योति दीप जगा जाना
जो अज्ञानता में अज्ञानी हैं
तुम ज्ञानता की लौ जला जाना
जो चिराग बुझे हैं शहादत में
तुम तनिक नव आस जगा जाना
जो भूखे प्यासे भिखमंगे हैं
तुम तनिक भूख प्यास हर जाना
जहाँ संस्कृति संस्कार लोप हुए
तुम संस्कृति संस्कार सीखा जाना
जो जीवन पथ हैं भटक गए
तुम तनिक जीवन.राह दिखा जाना
जो गम भवसागर में डूबे हैं
तुम तनिक हर्ष दर्श दिखा जाना
जो वियोग में जोगी बन बैठे
तुम प्रिय संयोगी आस जगा जाना
जो वृद्ध निरुपाय माँ बाप बैठे हैं
तुम तनिक हाल चाल तो पूछ जाना
माना जिन्दगी जो गमसीन है
सुख शांति समृद्धि झूले झूला जाना
अब की बार आई दीवाली में
तुम तनिक मिट्टी के दिये जला जाना
… सुखविंद्र सिंह मनसीरत
प्रवक्ता अंग्रेजी