अब कलम उठाकर लड़ना होगा
जब-जब वतन-परस्त, लोगों की सत्ता आयी है।
तब भारत माँ के आंचल में दुःख की बदली छायी है,
जब भी बिखरे हम, देश मेरा गुलाम हुआ,
जाने कितने टुकड़ों में हिन्दुस्तान हुआ।
बहुत हो चुका, अब कदम मिलाकर चलना होगा,
अब कलम उठाकर लड़ना होगा…..।
हाँथो में सभी के खंजर और कटारें हैं,
इक दूजे के बीच खिंची दिवारे हैं।
लड़ता है आपस में, हर कोई आज यहाँ,
कोई न किसी की सुनता है फरियाद यहाँ ।
इस सम्प्रत्यय को, समय के साथ बदलना होगा,
अब कलम उठाकर लड़ना होगा…..।
कुछ सफेदपोश हमें बाँटते रहते हैं,
फिर भी कुछ उनके, तलवे चाटते रहते हैं।
कुछ चमचे हैं, कुछ सत्तालोभी चमकचोर हैं,
जिनके कर्मों से देश में फैला घृणित शोर है।
जाने कब तक इस अग्नि में जलना होगा,
अब कलम् उठाकर लड़ना होगा…..।
हथियारों से युद्ध बहुत देखे हैं मैंने,
इक दूजे का खून बहाया जाता है।
पहले होती है राजनीति उनपर खुलकर,
तब उनको अग्नि पे सुलाया जाता है।
इस खूनी खेल के आगे, बढ़ना होगा,
अब कलम उठाकर लड़ना होगा…..।