अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/afe0a9eb32277907523b551d1f44fa26_f80e42cf3c3dab7f465d3bde800fcf8d_600.jpg)
अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
मुलाकातों में धड़कते हालात कहाँ।
तबस्सुम उनका गुलशन सा होता था,
अब उनकी बातों में वो जज़्बात कहाँ।
गुफ़्तगू हो जाती है उनसे कभी-कभी,
लेकिन अब वो उम्दा ख़यालात कहाँ।
उजालों अंधेरों में फ़र्क होता न था,
अब वो हसीं रूमानी दिन रात कहाँ।
मिलना आज भी होता है अक़्सर,
लेकिन वो रूहानी मुलाकात कहाँ।