अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
मुलाकातों में धड़कते हालात कहाँ।
तबस्सुम उनका गुलशन सा होता था,
अब उनकी बातों में वो जज़्बात कहाँ।
गुफ़्तगू हो जाती है उनसे कभी-कभी,
लेकिन अब वो उम्दा ख़यालात कहाँ।
उजालों अंधेरों में फ़र्क होता न था,
अब वो हसीं रूमानी दिन रात कहाँ।
मिलना आज भी होता है अक़्सर,
लेकिन वो रूहानी मुलाकात कहाँ।