अब आये हो तो वो बारिश भी साथ लाना, जी भरकर रो कर, जिससे है हमें उबर जाना।
अब आये हो तो वो बारिश भी साथ लाना,
जी भरकर रो कर, जिससे है हमें उबर जाना।
होठों में दबी उस ख़्वाहिश को अब नहीं झुठलाना,
की दर्द भरे अंधेरों से, अब हमें है मुकर जाना।
वो ख़त जिनमें बुना है, कुछ ख़्वाबों का ताना-बाना,
किसी शाम सौंप सके हम, तुम्हें वो भूला नज़राना।
नाराज़ से उस वक़्त की, नाराज़गी दूर कर जाना,
रुख़ हवाओं ने बदला, अब साथ हमारे मुस्कुराना।
आधे अधूरे लम्हों को अपनी मौजूदगी से भर जाना,
उन थमे हुए रास्तों पर संग हमारे कदम बढ़ाना।
कोहरे में छिपी परछाईयों से अब नहीं घबराना,
इस नयी धूप में पिघल जाएगा, जमे ग़मों का हर ठिकाना।
शिक़वा ज़िंदगी से कम हो सके, जिंदगी कुछ ऐसी बनाना,
की हमारी हर कविता को अपने एहसास की अदायगी से पूरी कर जाना।