अपेक्षाएं
जो औरों में ढूंढता है
तुझमें भी वो है नहीं
तेरे माथे पर भी शिकन
की लकीरें कम है नहीं।
लड़ता देखना चाहता है
औरों को सच्चाई के लिए
खुद कभी नहीं उठाई
आवाज़ अपने हक के लिए।
चाहता है सच्चाई के साथ
रहे हमेशा सब लोग यहां
देखता है जब ज़ुल्म कहीं
मुंह मोड़ता है फिर क्यों वहां।
बुरा लगता है सबको जब
करता है हम पर गुस्सा कोई
रोक पाए अपने गुस्से को
हम में भी ऐसा हुनर नहीं है कोई।
चाह है तुम्हारी मिलकर रहे
सब लोग आपस में यहां
रह पाते हो तुम अपनों के संग
उस छोटे से घर में भी कहां।