अपूर्णता में पूर्ण है जो ,
प्रेम पथ पर चला जो ,
वह कभी रुका नही ।
वो प्रेम ही क्या जो ,
वक्त के साथ बदल गया।
अपूर्णता में भी जो पूर्ण है।
वह असीम प्रेम है।
लफ्जों से बयां हो न पाए
वह अनंत प्रेम है।
स्नेह से बधीं जो डोर,
खुशी में जब बदल जाए।
शब्दों से भाव बंध न सके ,
आंखे ही हाल कह जाए ।
जब कुछ समझ में आए न,
क्या आस पास हो रहा।
दूर होकर भी जिसका ,
एहसास पास हो रहा।
उसकी हर चीज जब ,
प्राणो से प्यारी लगे।
जिसके बिन जिंदगी में,
सिर्फ उदासी रहे।
जिसको पाकर और कुछ,
पाने की चाहत न रहे।
ऐसा प्रेम तो बस नसीबों ,
से ही मिले।
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ