अपुन गाम में बाढ़
बंसी म गोंद लगिश, मछलियाँ नहीं आइल छह, सो जोटकी व चारा लगिश कि मछलियाँ दनदना के फंस गइल… ये सब बीती बातें भइल, गोस्वामी जी कहिश- ‘बीती ताहि बिसारिये, आगे की सुधि लेय’। भयबा, भौजी, दीदिया, चाचू, चच्ची…
अपन नवाबगंज बोचाही कलभट पर बाढर पानी तेज़ रफ़्तार से गिरल गे माई ! हमर घर के पास यही सौ कदम की दूरी पर आ गइल…. इधर रात्रि में ही सिरदर्द, त सर्दी-खाँसी की ऐसी की तैसी…. सलवा नाना याद आ गइल…. बचपन म बंसी स मछलियाँ मारत छेलह इही बाढ़ म। बाढ़-पीड़ितों म कइयों का मैंने मोबाइल म रिचार्ज कराय ह…. त बाढ़ म बीमारी लेकर भी आवत ह, फिर बाढ़ म शौचालय के भरने की समस्या भी होवत है, ऐसे में चिउरा फांकना ही ठीक हउव ।
शाम तक पानी अउर फैलेगा …. बाढ़ एक त्रासदी ह , किन्तु हरबार उपजाऊ मिट्टी लेकर आवत । हम गरीब बस इसी आश्वासन में जीवत । अब अगली खेप लिखब जी कि बाढ़ की खबर क्या है ?