अपार अब मैं हँसूं
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अगर मैं हंसा
अगर मैं हंसा दरके पहाड़ जुड़ेंगे.
सूखी नदियों में बाढ़ आ जायेंगे.
बेतहासा भागती हुई हवा जायेगी ठहर.
यह खन्डहर होगा एक युवा सजा-धजा शहर.
मेरा हंसना, मुझे स्वीकार करना है.
मैं पैदा हुआ हूँ बादलों की तरह आंसू बहाने?.
हँसी उधार दो अपार मैं हँसूं .
लकीर सा खिंचूं अनन्त में बिना विराम के.
धूप से डरूं नहीं न छाँह लील ले मुझे.
इसलिए उधार दो हँसी.
गोस्त खा गये तो क्या! प्राण शेष चर्म में.
चर्म है बिलख रहा उधार को तरस रहा.
मैं सुलग रहा अधिक अधिकार मांगने हँसी!
विद्रोह को रोक शांति मैं अभी परस रहा.
कठिन न राजद्रोह है अश्रु से न मोह है.
छिन गयी हँसी तुम्हारे छल से हार,टूट कर.
तुम कुटिल मैं सरल रख दिया हमें ठूंठ कर.
विद्रोह मेरा ध्वंस है करूंगा मैं अभी नहीं.
हँसी उधार दे तनिक मांगता सभी नहीं.
मैं हंसा तरंग बज उठा करेगा मौन में.
पुष्प-गुच्छ शांति से जान लेगा कौन मैं?
इस उदास भूमि में कोंपल भी फूट आयेंगे.
प्राणहीन ‘मान’ में सम्मान अटूट आयेंगे.
श्याम इस शरीर में श्याम कृष्ण का वास है.
श्रम उत्तप्त देह मेरा सो तेरा दीर्घ साँस है.
हर प्रहार ने मुझे पुकार कर पतित किया.
अधीर व्यग्र प्राण ने मुझे तभी दलित किया.
अनीर श्वेद था गिरा यही था श्रम का सिलसिला.
मेरा वजूद पिघल गया कठोर तप से यह मिला.
मन्दिरों के द्वार पर स्वर्ग के भीड़ में.
चुभो गया कोई मुझे नरक का नोंक रीढ़ में.
उत्तुंग उमंग में मेरा कहीं न नाम था लिखा.
कथांत में मुझे कुतर-कुतर गया टिका.
मैं प्रसन्न हाथ में रिक्तता मसल रहा.
सुधा के घट में मेरे भरा सदा गरल रहा.
क्रोध को दबा-दबा ढोंग जीने का किया.
वह अकाल मृत्यु मैंने अब जिया तब जिया.
हर रुदन पर सोचता कि आखिरी रुदन है यह.
पर,गये सब आंसू सूख आखिरी कथन है यह.
हँसी उधार दो अपार अब मैं हँसूं.
मेरी तेरी ग्लानि भी सब उतार दो
अपार अब मैं हँसूं.