अपशब्द
“यार एक बात समझ में नहीं आई?” पशोपेश में पड़े राकेश ने सिर खुजाते हुए कहा।
“क्या?” गोपाल ने ठण्डे दिमाग़ से पूछा।
“भला एक छोटी-सी बात पर महाभारत का इतना बड़ा युद्ध कैसे रचा गया?” राकेश के स्वर में आश्चर्य था।
“चुप बे अंधे की औलाद।” गोपाल ने अचानक क्रोधित होकर कहा।
राकेश को गोपाल के इस बदले व्यवहार से जैसे थप्पड़-सा लगा। एक तो वह इतने प्यार से प्रश्न पूछ रहा है और यह महाशय गाली दे रहें हैं।
“क्या कहा बे?” राकेश ने गोपाल का गिरेबां पकड़ते हुए कहा।
“रिलेक्स राकेश भाई … टेक इट इजी।” गोपाल ने अपना गिरेबान छुडवाने के प्रयास में कहा।
“व्हाय?” राकेश ने पूछा और अपनी पकड़ ढीली की।
“मैंने तो बहुत छोटी-सी बात कही थी और आप हाथापाई पे उतारू हो गए! मेरा कालर पकड़ लिया आपने!” गोपाल ने कमीज़ ठीक करते हुए कहा।
“कालर नहीं पकड़ता तो क्या आरती उतारता साले … और ये छोटी-सी बात थी!”
राकेश ने बड़े गुस्से में भरकर कहा, “क्या मेरा बाप अन्धा है? अगर मेरे हाथ में गन होती तो मैं इस छोटी-सी बात पर तुझे गोली मार देता।”
“यही तो ….” गोपाल ने हँसते हुए कहा, “यही तो मैं समझाना चाहता था, जाट बुद्धि।”
“क्या मतलब?” राकेश का गुस्सा कुछ शांत हुआ।
“मतलब एकदम साफ़ है, तुम्हारे पिता दृष्टिहीन नहीं हैं। यह बात मैं अच्छी तरह से जानता हूँ लेकिन तब भी तुम मुझे मारने पर उतारू हो गये। यदि खुदा-न-खास्ता पिस्तौल तुम्हारे हाथ में होती तो शायद मैं इस वक़्त आखिरी सांसे गिन रहा होता!”
गोपाल ने इस सादगी से कहा कि राकेश की भी हंसी छूट गई।
“सोचो मिस्टर राकेश, दुर्योधन पर क्या गुजरी होगी? जिसका बाप सचमुच में ही अन्धा था और उसे अपनी भाभी द्रौपदी के मुख से यह सुनना पड़ा ‘अन्धे का पुत्र अन्धा।’ अत: इस अपशब्द पर महाभारत का युद्ध होना तो तय था ही।”
“हाँ, आप सही कह रहे हैं, गोपालजी।” राकेश ने पूरी बात समझते हुए सिर हिलाकर कहा।
“इसलिए तो कहता हूँ जनाबे-आली … किसी काने या अन्धे को यदि प्रेम से सूरदास या नैनसुख कह दिया जाये तो बुरा क्या है?”
गोपाल जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “कम से कम अपशब्द कहने के कारण दुबारा महाभारत तो न होगी!”