अपरिचित
पल- पल से मैं आज अपरिचित
जानी-सी आवाज अपरिचित।1
उड़ता जाता दूर गगन में
फिर भी है परवाज अपरिचित।2
मंजिल के कुछ पास पहुँच कर
लगता है आगाज अपरिचित।3
भेद भरे सब ढ़ेर कथानक
रहता फिर-फिर राज अपरिचित।4
पूज रहा मैं धुन को तबसे
आज लगा है साज अपरिचित।5
कितना सब कुछ कहता आया
लेकिन अब अं दाज अपरिचित।6
परतें अबतक उभरीं ढेरों
दिखता जितना प्याज अपरिचित।7
@