अपमान
जहां सम्मान न हो वहां अपमानित होना पड़ता है,
अपमान भी कई बार जरूरी होता है,
इन्सान को उसकी औकात बतलाता है अपमान,
इन्सान को आईना दिखाता है अपमान,
ज़मीर का महत्व बतलाता है अपमान।
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आत्म अहम को ठेस पहुंचाता है अपमान,
अपमान करने वाले को संतुष्टि देता है अपमान,
एक नव जीवन की ओर अग्रसर करता है अपमान।
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ईश्वर को याद करवाता है अपमान,
पूजा अर्चना की ओर विश्वास बढ़ाता है अपमान,
समय की नज़ाकत बताता है अपमान,
सुख दुःख की अनुभूति कराता है अपमान।
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समाज में इज्ज़त को मापने पैमाना है अपमान,
अपमानित समाज में अवनति का प्रतीक है अपमान,
अभिमान का विपरीत है अपमान,
समाज को तिरस्कृत करता है अपमान।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी,
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश