अपमान
******अपमान*******
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अपमान की लगती आग,
मुँह से निकलती है झाग।
बेईज्ज़ती की हद पार,
लगती तन मन में आग।
मन में उठती है तब टीस,
जैसे डसता है काला नाग।
नहीं काम आती है सीख,
नहीं बजता है कोई राग।
चाहे करों कोशिशें लाख,
नहीं धुलते हैं काले दाग।
मनसीरत मन का बैरागी,
लग जाती नाईलाज लाग।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)