अपमानित
अपमानित
मैं
अपमानित हूँ सदियों से
गौरवान्वित शब्द
छुपा रहा धर्मग्रन्थों के पीछे
सिंहासन के नीचे
सेठों की तिजोरी की
आड़ में
मेरा धुँधलापन
कायम रखने को
व्यवस्था ने रचे
तमाम प्रपंच
हर संभव रखा मुझे
शिक्षा से दूर
सिंहासन से दूर
संपत्ति से दूर
मैं पहाड़ों से टकराया
मैं शिखर से टकराया
मैं जमीं से टकराया
इस अपमान ने
मेरी आँखों में आँसू नहीं
आग पैदा की है
जो जलाती रहेंगी
मेरी दुर्बलताओं को
सदियों तक
-विनोद सिल्ला©