Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 May 2023 · 2 min read

अपनों की ठांव …..

गांव में अपनों की ठांव …..
भुल गए सब हंसी ठिठोली
भुल गए बचपन की यादें
सिमट गए है खुन के रिश्ते
बंट गया बहन – भाई का प्यार
ननद भौजाई की मीठी तकरार
सास बहु कि संबंधों की मर्यादा
धुमिल हो रहे सारे रिश्ते
चाचा – भतीजा, देवर – भौजाई
देवरानी – जेठानी, फुआ – फुफा
ढ़ीली पड़ गई राखी का बंधन
नहीं सुनाई देती है अब
तीज – त्यौहार के गीत
बहन – बेटियों की किलकारियां
इनके सरगोटियों के खेल
सावन में बहुरा के झुले
शादी-ब्याह में उत्साह
भेंट चढ़ गया है आपसी कलह के।

अब गांव-गांव न रहा
शहर बनने की होड़ में है
खो रहा है आपसी संबंध
एक दुसरे से बड़े बनने की होड़ में
लहलहा रहा है अंदर विषैले फसल
तैयार है मसलने को, डंसने को
ना बड़ों का लिहाज
ना छोटों से स्नेह
ना संबधों की मर्यादा
बुन रहे है जाल फंसाने को
जिसमें स्वंय ही फंसते जा रहे
उलझते जा रहे मकड़ी की तरह
गिरते जा रहे अनजानी खाई में
टांगी जा रही है अपनों की इज्जत
घर के पुराने मुंडेरो पर।
ब्रह्म बाबा भी सुखने लगे है,
जैसे वंशजों में भी सुखा रहा है
पूर्वजों के संस्कार, अपनत्व, प्रेम,
परम्परा, सौहार्द, और साहचर्य,
बरगद का बुढ़ा पेड़ भी उखड़ गया
जो देता था छांव रहगीरों को
जिसके डालों पर सारे बच्चे
खेलते थे ततवा-ततैया, लुकाछुपी
परदेशी लोग गांव से दुर हो गए
आते है पर्व, त्यौहार और शादी में
साल में एक दो बार यात्री सा
और, चले जाते है छोड़कर अपनों को
जिजीवषा के लिए दुर देशों में।

सुबह – सुबह नीम की दातुन
वास्तु शास्त्र के भेंट चढ़ गया
सिमटते गए आम – जामुन के बाग
सुखते गए शीशम
सरकार को न चिंता थी, न है
न जनसमुदाय इससे खिन्न है
नीरो सा द्रष्टा बन देख रहे
गांव के बुजुर्ग और बच्चे
समन्वय बना भुत – भविष्य का
ना वेदना है, न संवेदना, न चित्कार
घट रही प्राकृतिक संपदा को देख?
सुख रहे है तलाब और कुँए
सिमट रहे खेत खालिहान
फैल रहे कंक्रीट की मकान
झुलस रहे धुप में सब
कहीं नहीं पीपल की छांव
कहीं नहीं अपनों की ठांव ।

Language: Hindi
1 Like · 300 Views
Books from Awadhesh Kumar Singh
View all

You may also like these posts

जिसके लिए कसीदे गढ़ें
जिसके लिए कसीदे गढ़ें
DrLakshman Jha Parimal
मन मसोस
मन मसोस
विनोद सिल्ला
किसकी सदा....
किसकी सदा....
sushil sarna
प्रकृति में एक अदृश्य शक्ति कार्य कर रही है जो है तुम्हारी स
प्रकृति में एक अदृश्य शक्ति कार्य कर रही है जो है तुम्हारी स
Rj Anand Prajapati
हे आदिशक्ति, हे देव माता, तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।।
हे आदिशक्ति, हे देव माता, तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।।
Abhishek Soni
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
रात ॲंधेरी सावन बरसे नहीं परत है चैन।
रात ॲंधेरी सावन बरसे नहीं परत है चैन।
सत्य कुमार प्रेमी
मिलोगे जब हमें प्रीतम मुलाकातें वही होगी
मिलोगे जब हमें प्रीतम मुलाकातें वही होगी
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
सचेतन संघर्ष
सचेतन संघर्ष
अमित कुमार
गरीब हैं लापरवाह नहीं
गरीब हैं लापरवाह नहीं
Dr. Pradeep Kumar Sharma
विवेक
विवेक
Rambali Mishra
समझौता
समझौता
Sangeeta Beniwal
हम जंगल की चिड़िया हैं
हम जंगल की चिड़िया हैं
ruby kumari
अब तक तबाही के ये इशारे उसी के हैं
अब तक तबाही के ये इशारे उसी के हैं
अंसार एटवी
क्या खूब वो दिन और रातें थी,
क्या खूब वो दिन और रातें थी,
Jyoti Roshni
हिंदी दिवस
हिंदी दिवस
Akash Yadav
तुम हो एक आवाज़
तुम हो एक आवाज़
Atul "Krishn"
आरम्भ
आरम्भ
Neeraj Agarwal
इजाजत
इजाजत
Ruchika Rai
हर शक्स की एक कहानी है ।
हर शक्स की एक कहानी है ।
PRATIK JANGID
*****हॄदय में राम*****
*****हॄदय में राम*****
Kavita Chouhan
मन दुखित है अंदर से...
मन दुखित है अंदर से...
Ajit Kumar "Karn"
#अंतिम_उपाय
#अंतिम_उपाय
*प्रणय*
आओ नववर्ष के पावन पर्व की प्रीती मनाएं
आओ नववर्ष के पावन पर्व की प्रीती मनाएं
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"चाबी वाला खिलौना"
Dr. Kishan tandon kranti
सज़ल
सज़ल
Mahendra Narayan
प्रिय गुंजन,
प्रिय गुंजन,
पूर्वार्थ
कुंडलियां
कुंडलियां
Suryakant Dwivedi
दे संगता नू प्यार सतगुरु दे संगता नू प्यार
दे संगता नू प्यार सतगुरु दे संगता नू प्यार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
समाज का डर
समाज का डर
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
Loading...