अपनों की खातिर कितनों से बैर मोल लिया है
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अपनों की खातिर कितनों से बैर मोल लिया है
अब उड़ने दो परिंदे को , पिंजरा खोल दिया है !
फतेह कर – कर ही लौटेंगे मंजिलों को हम ,
यह किसी और से नहीं , खुद से बोल दिया है !!
✍कवि दीपक सरल
अपनों की खातिर कितनों से बैर मोल लिया है
अब उड़ने दो परिंदे को , पिंजरा खोल दिया है !
फतेह कर – कर ही लौटेंगे मंजिलों को हम ,
यह किसी और से नहीं , खुद से बोल दिया है !!
✍कवि दीपक सरल