अपने
इंसान दुनिया जीतकर भी
अपनों से हार जाता है ,
कभी-कभी अपनों से जीतकर भी
अपने आप से हार जाता है ,
कभी-कभी उसके अपने ही उसकी
हार का कारण होते हैं ,
क्योंकि उसके अपने ही उसके
अन्तस्थ राज़ जानते हैं ,
गैरों के दिए जख्म वक्त गुजरते
भर जाते हैं ,
पर अपनों के दिए ज़ख़्म वक्त गुज़रते
गहराते हैं ,
इतिहास के पन्ने इसके
गवाह हैं ,
जिसमें अपनों द्वारा छले गए
प्रमाण हैं ,
रावण बुद्धिमान शक्तिशाली होते हुए भी
मारा गया ,
पृथ्वीराज चौहान शूरवीर होते हुए भी
छला गया ,
पांडव युद्ध जीतकर भी अपनों के
कर्मो से हार गए ,
गांधी अंग्रेजों से जीतकर भी अपनों द्वारा
मार दिए गए ,
इंसान जो अपना सब कुछ अपनों पर
क़ुर्बान कर देता है ,
वही अपना अपने स्वार्थ के लिए अपनों को
जीते जी मार देता है।