अपने
परयों की भीड़ में मिल जाता है कोई अपना सा लगता है,
मगर खुल जाएँ आखें तो सपना सा लगता है,
हकीकत तो यही है,
ना इस समय कोई राम है,
ना हनुमान है,
सीना चीर कर दिखाना पड़े तो दिखा देंगे,
धनुष बाढ़ चलने पड़े,
तो चल लेंगे,
अगर कोई कह दे,
चीर दो सीना,
तो वो अपना कैसे हुआ,
जिंदगी में हर चीज पैसा कैसे हुआ,
जब कोई अपना ही नहीं हुआ|
दौलत से चीज़ कमा सकते हैं,
इंसानियत नहीं,
बहुत से अच्छे बन सकते हैं,
मगर सच्चे नहीं,
सच्चा प्यार ,सच्ची दोस्ती, या सच्चे रिश्ते तो सिर्फ एक कहानी है
सच्च तो ये है कि खुद की पहचान खुद ही बनी है|