अपने ही व्यवहार से
अपने ही व्यवहार से
क्षुब्ध हूँ, अपने ही व्यवहार से,
है बेचैनी, छोटी सी तकरार से।।
शांत रहता हूँ, भीरु समझते हैं,
उदार रहने में,धीरू समझते हैं।
उग्रता में, वे रुष्ट हो जाते हैं,
सहमत नही सत्य विचार से ।।०।।
क्षुब्ध हूँ, अपने ही व्यवहार से।।
मधुरता की खिल्ली उड़ाते हैं।
गहूँ गर राह परगृह की,
घड़याली घोर अश्रु बहाते हैं।
विरक्ति भ्रम के हा हा कार से।।०।।
क्षुब्ध हूँ, अपने ही व्यवहार से।।
आस ले सब आशातीत होते हैं,
बनू वो डोर,जो माला पिरोते हैं।
कर्कश स्वर झकझोर जाते हैं।
घृणा घन घोर – कटुता से।।०।।
क्षुब्ध हूँ, अपने ही व्यवहार से।।
झूमू जब गैर प्रीत लुटाते हैं।
गर “मैं” को विस्मरित करदूँ,
न्यौछावर हो मुझे सताते हैं।
नही आशा,प्यार के व्यापार से।।०।।
क्षुब्ध हूँ, अपने ही व्यवहार से।।
डॉ. कमलेश कुमार पटेल “अटल”