अपने ही तो दुख देते हैं
अपने ही सुख देते हैं, अपने ही दुख देते हैं
अपने अपने स्वार्थ सभी के, स्वार्थ में डूबे रहते हैं
अपनों ने ही दिया दर्द, सब यही कहानी कहते हैं
परायों का कोई स्वार्थ नहीं, निरपेक्ष इसलिए रहते हैं
तेरा मेरा करते करते, जीवन सभी निकल जाता है
बहुत देर हो जाती है,जब राज समझ आता है
यही जगत का महामोह है, सब स्वार्थ में अंधे रहते हैं
अपने और पराये में ही,सब मरते खपते रहते हैं
कौन है अपना,कौन पराया,स्वारथ के सब रिश्ते हैं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी