अपने ही अपनों को
जो दिखता हैं ओ होता कहां
अपनों से भला कोई जीतता कहां।।
सब मतलबी हों गए हैं लोग यहां
अब लोगों में रहा ओ बात कहां।।
होती थीं एक छत्त के नीचे, कभी गप्पे जहां
अब दूर तलक वहां कोई दिखता कहां।।
जिसके होने से थीं वहां महफ़िल जवां
अब ओ शमां,शमां कहां।।
आता-जाता हैं कोई तो सड़कें वहां
अब कई मुद्दों से कोई आता वहां-कहां।।
जमाने ने एक बात सच्चा हैं कहां
अपने ही अपनों को कहते हैं पराया यहां।।
किसी के कहने से कुछ होता कहां
अब ओ मुहब्बत भी रहा कहां,ओ मुहब्बत यहां।।
बिक रही हैं बड़े शौक़ से ईमान यहां
अब इंसानियत भी बाकी सब में रहा कहां।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा,सीवान-बिहार