छुअन लम्हे भर की
झुकी सी वो आँखें, छुपाती हैं क्या क्या
औ मिलती निगाहें, जताती हैं क्या क्या
ये रेखाएं उनकी हैं इतिहास जैसी,
इन्हे देख समझो पढ़ाती हैं क्या क्या
मोहब्बत थी मुझको ये कहना नहीं था
मेरी अब ये पलकें बताती हैं क्या क्या
छुअन लम्हे भर की वो, हासिल है अपना,
तमन्नाएं सपने सजाती हैं क्या क्या।
किया जब भरोसा भी तूफां पे देखो
ये बेखौफ लहरें बहाती हैं क्या क्या
ये बारिश फलक से है या है जिगर से,
मोहब्बत में आंखें भिगाती हैं क्या क्या।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ