अपने वजूद की पहचान कर चला है
आज दिल फिर से मुकम्मल हो चला है
तेरे यादो की गली से मुह मोड़ के चला है
उधार की खुशिया ..जो तुझसे होकर गुजरी
किसी जमाने मे जो थी सिर्फ तुझमे सिमटी
उल्फत के वो फसाने ..जिन्हे गुजरे हुए जमाने
नमी जिनको याद कर हो ..मुह मोड़ के चला है
दामन तेरी उल्फत का बस छोड़ कर चला है
बस !खुद के वजूद की पहचान कर चला है