अपने लाशें लिए ढ़ुंढ़ रहा हूं कोई तो शमशान का पता बताएं
नमस्कार मेरे प्यारे पाठको
मैं रौशन राय इस करोना महामारी में जो देखा जो महसूस किया वो सब मैं अपने कविता के माध्यम से आप सब तक पहुंचाने की कोशिश की हैं यदि इस कविता में आपको कुछ गलत लगें तों इसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं।
पर आपसे निवेदन है कि आप इस कविता को पूरा अवश्य पढ़ें और अपना बहुमूल्य सुझाव देकर हमें पुलकित करें {धन्यवाद}
अपनी लाशें लिए ढुंढ रहा हूं
कोई शमशान का पता बताएं।
जहां पर गया था खुद मैं जलने
देखा मुर्दे को वहां लाईन लगाए।
जीवन था तों हर जगह पर लाईन
लाईन बीना न कुछ होता था।
जलने की खातिर मुर्दे का लाईन
मानव ये कभी न सोचा था।
कैसा हैं ये महामारी जो हिन्दू
भी लाश दफनाते हैं।
दफनाने खातिर न जगह मिला।
तो हर धर्म नदी में लाश बहाते हैं
हर सोच के आगे सोच हैं पर
ऐसा कभी न कोई सोचा था।
हुआ था मानव बहुत लाचार
पर ऐसा लाचारी न देखा था।
हम लाश के पिछे सैकड़ों लोग
चार कंधों पर चढ़कर जातें थे।
जब तक मैं जल नहीं जाता
सब लोग वही पर रहते थे।
संग मेरे आना छोड़ो
देने कंधे से सब दुर हुए।
मुंह देखना न हुआ नशीव
परिजन कितना मजबूर हुए।
मां बाप भाई बहन पत्नी से
रिश्ता अनमोल रहा।
लाडला बेटा लाडली बेटी
आने को करीब न डोल रहा।
ज्ञान विज्ञान पर जो नाज किया था
वो तो चखना चुर हुआ।
एक विज्ञान के खातिर मुर्ख
सारे ग्रंथों से दुर हुआ।
कण कण में है माया उनका
वो मायापति कहलाते हैं।
तेरी विज्ञान वाली बात
वहीं तेरे दिमाग में पहुंचाते हैं।
एक सुक्ष्म जीव से भायभीत जग हैं
डाॅक्टर भी हैं डर गया ।
पैसा पहचान काम न आया
कितने तरफ के मर गया।
कितने तरप के मर गया।
रचनाकार- रौशन राय
तारिक – 12 – 07 – 2021
दुरभाष नं – 9515651283/7859042461