अपने राम सहारे
बहा ले गई नदी काल की , मेरे कपड़े सारे।
मैं निर्वस्त्र खड़ा था तट पर अपने राम सहारे।।
कृपा राम की हुई, राम ने आकर वस्त्र पिन्हाए।
वस्त्र पहनकर प्रभु-प्रशस्ति में मैंने गीत बनाए।।
अन्त नहीं प्रभु की प्रभुता का, सबको वही उबारे।
बहा ले गई नदी काल की, मेरे कपड़े सारे।।
राम सभी को वस्त्र पिन्हाते, देते भोजन – पानी।
राम राम रटते रहते हैं, मानी – ज्ञानी – ध्यानी।।
राम, नाथ हैं सारे जग के, जन-जन यही उचारे।
बहा ले गई नदी काल की, मेरे कपड़े सारे।।
वे दुखहर्ता, सुखकर्ता हैं, सब जग उनको ध्याता।
उनकी अनुकम्पा से मानव मनवांछित फल पाता।।
अब तक अपने सब भक्तों के सारे कष्ट निवारे।
बहा ले गई नदी काल की मेरे कपड़े सारे।।
जोड़े रखो राम से नाता, मिथ्या सारे नाते।
जो दुख देते रामभक्त को, करनी का फल पाते।।
सारे शत्रु राम के वश में, उन्हें कौन ललकारे?
बहा ले गई नदी काल की, मेरे कपड़े सारे।।
राम सृष्टि के सूत्रधार हैं, सपने वही दिखाते।
वे सपने में नदी किनारे, हैं निर्वस्त्र बनाते।।
खुद आते कपड़े पहनाने, बन आंखों के तारे।
बहा ले गई नदी काल की, मेरे कपड़े सारे।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी