अपने मन मंदिर में, मुझे रखना, मेरे मन मंदिर में सिर्फ़ तुम रहना…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
यह झुकना, सिर्फ़ झुकना नहीं है,
यह समर्पण है, प्रेम का,
तुम्हारे प्रति अपने अटूट विश्वास का,
इसे तुम, दिखावा ना समझना,
क्षणिक, चाहत ना पढ़ना,
यह जन्म जन्मांतर का सिर्फ़,
वह निश्छल, भाव है,
जिसमें दो परिवारों के साथ,
कई परिवारों की ख़ुशियाँ समाई है,
इसमें हमारे-तुम्हारे, मिलन की,
वह सुनहरी यादें, समेटी जाएगी,
जिसके क़िस्से की आवाज़,
दूर तलक जाएगी,
यह प्रेम है, यह अर्पण है,
यह तुम्हारे प्रति, मौन संवेदना है,
तुमसे चाह है, कि इसी राह पर,
एक युग तक साथ देना,
अपने मन मंदिर में, मुझे रखना,
मेरे मन मंदिर में सिर्फ़ तुम रहना…