अपने भी हुए बेगाने अब
अपने भी हुए बेगाने अब
अपने भी हुए बेगाने अब
क्या दौरे ज़माना आया है।
महफिल में शामिल लोगों में
खुद को न कहीं भी पाया है।
खुशियों की इस महफिल में
अपनों के दिल की बात सुनी
धुंधली भी क्या यूं छवि हुई
अपने कुछ को गुम पाया है।
क्या इतना कुछ सुनियोजित था
इंगित हो गया इस तरह अभी
यूं भूले में रह गए अब तक
कि तुम्हारे थे अपने हम भी ।
इस शुभ अवसर पर दोस्त दिखे
सब अपने अपने खास दिखे
जो जाने पहचाने चेहरे भी
अपने हो कर अंजान दिखे ।
जीवन की भूलभुलैया में
मत खोना अपना धैर्य कभी
संभाव सहित रहो कर्मरत
सफल होगा जीवन ये तभी ।