*अपने बाल खींच कर रोती (बाल कविता)*
अपने बाल खींच कर रोती (बाल कविता)
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अपने बाल खींचकर रोती
दुखी देर तक अक्सर होती
मॉं ने गुड़िया को समझाया
लेकिन उसको समझ न आया
अब भी ऐसा ही करती है
अपनी करनी खुद भरती है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451