अपने पल्ले कुछ नहीं पड़ता
जात-धरम के नाम पर
आख़िर कोई क्यों ऐसे लड़ता
रंग-नस्ल के नाम पर
आख़िर कोई क्यों ऐसे मरता
कोई तो समझाए जरा
अपने पल्ले कुछ नहीं पड़ता…
(१)
क़ौम-फिरका के नाम पर
आख़िर कोई क्यों ऐसे सड़ता
पार्टी-जमात के नाम पर
आख़िर कोई क्यों ऐसे करता
मैं तो निरा पागल ठहरा
अपने पल्ले कुछ नहीं पड़ता…
(२)
देश-समाज के नाम पर
आख़िर कोई क्यों ऐसे रहता
रीति-रिवाज के नाम पर
आख़िर कोई क्यों ऐसे सहता
मैं तो एकदम जाहिल हूं यहां
अपने पल्ले कुछ नहीं पड़ता…
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Shekhar Chandra Mitra
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