अपने पराये
संत ज्ञानी कहते है पराये कोई नही है,
प्रेम की गंगा जीवन में बसा सभी अपने है।
मत कर बैर भाव सत्य असत्य को पहचाने,
सभी अपने ही है प्रेम भाव को जाने।
करते जाय सतत परिश्रम,
सफलता की सीढ़ी चढ़े हरदम।
पराये भी देख के नाज करे,
की मन में विश्वास का धीर धरे।
हिन्दू मुस्लिम और सिख ईसाई ,
हो सभी अपने भाई भाई।
नहीं होगी अब कोई पराये,
प्रेम आनंद को अपनाये।
ईद होली अब संग मनाये,
पराये को भी गले लगाये।
जुड़ जाय ह्रदय की तार,
पराये को भी अपना बनाये।
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कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना , बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822