अपने पराए
कौन है अपना कौन पराया,
सब को ईश्वर तूने बनाया।
भेद नहीं जब तू कभी माने,
किसको अपना पराया जाने।
जब जो भी कर्तव्य मिलेगा,
पूरा करूं तेरा आदेश जानूं।
तू मेरा प्रभु अपना है ईश्वर,
तेरी ज्योति ही सबमें मानूं।
न वैर मेरा जग मे किसी से,
अपने पराए होते नहीं हैं।
कभी कभी पराए भी यहां,
अपनो से बढ़के नजर आते।
सबके प्रति समभाव रखो,
न आशा और उम्मीद बने।
सब अपना जीवन हैं जीते,
मत दूजो के यहां कर्म गिनें।
उम्मीदें पलती दूजो से यदि,
दूजो के भाव भी पहचानो।
कलह क्रंदन मे पड़कर तुम,
समय व्यर्थ हुआ है मानो।
जो दोगे वो पाओगे जीवन में,
नियम यही ईश्वर ने बनाया।
कौन तेरा बनेगा यहां अपना,
जब तू किसी का न बन पाया।
बांटो सदभाव खुशी जग में,
सब अपने नजर आएंगे।
स्वभाव ही नजरिया बनता,
जैसा समझेंगे वैसा पाएंगे।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश