अपने जैसा दूसरा
एक अजनबी मुसाफिर किसी गाँव में पहुँचा। गाँव में दाखिल होते ही उसे कुछ लोग मिल गए। एक बुजुर्ग को संबोधित करते हुए उसने पूछा, ‘‘इस गाँव के लोग कैसे हैं ? क्या वे अच्छे और मददगार हैं ?’’ बुजुर्ग ने अजनवी के सवाल का सीधे जवाब नहीं दिया, उलटे एक सवाल कर दिया, ‘‘मेरे भाई ! तुम जहाँ से आए हो वहाँ के लोग कैसे हैं ? क्या वे अच्छे और मददगार हैं ? वह अजनबी अत्यंत रुष्ट और दुःखी होकर बोला, ‘‘मैं क्या बताऊँ ? मुझें तो बताते हुए भी दुःख होता है कि मेरे गाँव के लोग अत्यंत दुष्ट हैं। इसलिए मैं वह गाँव छोड़कर आया हूँ। लेकिन आप यह सब पूछकर मेरा मन क्यों दुखा रहे हैं ?’’ बुजुर्ग बोला, ‘‘मैं भी बहुत दुःखी हूँ। इस गाँव के लोग भी वैसे ही हैं। तुम उन्हें उनसे भी बुरा पाओगे।’’ तभी एक राहगीर आ गया। उसने भी उस बुजुर्ग से यही सवाल किया, ‘‘इस गाँव के लोग कैसे हैं ?’’
बुजुर्ग ने भी पूर्ववत् उलटा सवाल दाग दिया, ‘‘पहले तुम बताओ जहाँ से तुम आये हो, वहाँ के लोग कैसे हैं ? राहगीर यह सुनकर मुस्करा दिया। उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। उसने कहा कि मेरे गाँव के लोग इतने अच्छे हैं कि उनकी समृति मात्र से सुख की अनुभूति होती है। वह गाँव छोड़ते हुए मुझें दुःख है, लेकिन रोजगार की तलाश यहाँ तक मुझे ले आई है। इसलिए पूछ रहा हूँ कि यह गाँव कैसा है ? बुजुर्ग बोला की दोस्त ! यह गाँव भी वैसा ही है। यहाँ के लोग भी उतने ही अच्छे हैं। वास्तव में इनसानों में भेद नहीं होता। जिनके सम्पर्क में हम आते हैं, वे हमारी ही तरह हो जाते हैं-अच्छे के लिए अच्छे और बुरे के लिए बुरे।संगत का असर अवश्य आता है।