–अपने जख्म छुपा लेते हैं —
लिखता हूँ शायरी
तो जाने किस किस पर क्या गुजर जाता है
लिखता हूँ अपनी दास्ताँ
पर न जाने किस किस का ध्यान कहाँ कहाँ जाता है
अरमान दिल के टूटे हुए
कलम के साथ कागज़ पर चल देते हैं
बिखरे तो बहुत थे
पर वक्त के साथ ही अब हो लेते हैं
यूं ही नहीं कोई लिख देता
अपने टूटे हुए दिल के किस्से
हर किस्से की होती है पहचान
इस लिए उस के कभी कभी हो लेते हैं
जवान दिलों की धड़कन बनकर
किस्से कहानियां गढ़ ही लेते हैं
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान के लिए
हम अपने जख्मो को छुपा लेते हैं
अजीत कुमार तलवार
मेरठ