” अपने घर आ जाओ “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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कहाँ हो ?……कैसे हो ?
मैं राह निहार रही हूँ !
सुने में तकिये तले
मुंह छुपाये रो रही हूँ !!
आँखें मलते -मलते
लाल हो गयीं हैं !
दिन भर इंतजार करके
रातें बेकार हो गयीं हैं !!
मैं लॉक डाउन के
मापदंडों को निभाउंगी !
मर्यादा के दहलीज के अन्दर
ही सिमट के रह जाउंगी !!
तुम तो चले जाते हो
आने को भूल जाते हो !
हमारी चाहतों को तुम
सदा तडपाते हो !!
बस बहुत हो गया
काम- काज में व्यत रहना !
अब जुदाई का भला
क्यों दर्द सहना ?
घर में जो सुख है
कहीं मिलता नहीं !
तुम्हारे बिन मुझे कुछ
और अब भाता नहीं !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
नाग पथ
दुमका